झुलस रहा कालिदास (Jhulas Raha Kalidas / edi. Madhukar Ashthana)

299.00

Buy Now
Category:

‘झुलस रहा कालिदास’ शीर्षक से प्रकाशित भारतेन्दु मिश्र के चुने हुए गीतों का यह संकलन कवि को नये रूप में प्रस्तुत करता है। भारतेन्दु मिश्र संस्कृत के विद्वान हैं, खड़ी बोली के कवि हैं और अवधी के दुर्लभ गद्यकार, कथाकार और कवि हैं। जैसा कि नाम से ही प्रकट है यह संकलन प्रधानतः विषमता से व्याप्त उनकी व्यथित मार्मिक उक्तियों को व्यक्त करता है। यह व्यथा भावुकता से गीली या लिजलिजी नहीं, इसमें युगबोध का ताप है। आँखें खोल कर देखने वाले आदमी की टीस है। तभी वह लिख सके हैं-‘ये जो सोया मध्यवर्ग है/इसको कैसे कौन जगाये/सोच बिरानी घर छोटा सा/दिल से इनकी नाक बड़ी है।’
दिल से उनकी नाक बड़ी है, मध्यवर्गीय पाखंड का अभूतपूर्व और सटीक अर्थ-गर्भित रूप है। भारतेन्दु ने इस संकलन में परिचित व्यक्तियों के अद्भुत मर्मस्पर्शी रेखाचित्र उकेरे हैं। ये रेखाचित्र अपनी सहज भाव चित्रात्मकता में निराला, महादेवी वर्मा की परंपरा में हैं। यहाँ देखा हुआ परिचित सामान्य व्यक्ति अपनी मानवता में तथाकथित महापुरुषों से कहीं अधिक भावाकुल कर देता है, लघुता में महानता का जीवन बिंब है । रामलखन जैसों पर लिखी गयी कवितायें आज की हिंदी कविता के इतिहास में अपना स्थान बनाती हैं। और इस सबके साथ कालिदास झुलस रहा है किन्तु कालिदास तो कालिदास है, भारतीय काव्य के गुरु झुलसते हुए। इस कवि गुरु की एक झलक भारतेन्दु के इस संकलन में सुरक्षित है-‘मेघ का टुकड़ा झरा है कल/फिर नदी का पाँव भारी है।’

विश्वनाथ त्रिपाठी
वरिष्ठ साहित्यकार

Author

एडिटर मधुकर अष्ठाना

Format

Paperback

ISBN

978-81-977075-7-5

Language

Hindi

Pages

132

Publisher

Shwetwarna Prakashan

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “झुलस रहा कालिदास (Jhulas Raha Kalidas / edi. Madhukar Ashthana)”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Shopping Cart
Scroll to Top