‘जनगीत अष्टक’ में केवल उन जनगीतकारों की रचनाएँ शामिल हैं जो आठवें दशक में ही नवगीत से आशिक संबंध विच्छेद कर जनगीत-सृजन, उसके विकास और सामाजिक दायित्व की पूर्ति में मददगार या प्रतिबद्ध रहे हैं। ‘जनगीत अष्टक’ में शामिल सभी आठ गीतकारों का रचनात्मक उद्देश्य समान होने के बावजूद अभिव्यक्ति-भंगिमा के धरातल पर इनमें काफी फर्क है। इन सभी रचनाकारों को एक ही समवेत संकलन में प्रस्तुत करने के पीछे हमारा कोई अन्य उद्देश्य नहीं है; हम केवल जनगीत के उदय और विकास की सामाजिक और ऐतिहासिक आवश्यकता और स्थितियों की वस्तुपरक पड़ताल करना चाह रहे हैं। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए और सभी रचनाकारों की रचनात्मकता का एक सामान्य परिचय पाठकों को देने के उद्देश्य से मुख्य धारा के जनगीतकारों के बारह बारह गीत इस संकलन में शामिल किये गये हैं। जनगीत कोई आसमान से टपका हुआ काव्य रूप नहीं है, यह प्रगतिशील दौर के क्रांतिकारी और परिवर्तकामी गीतों के विकास का स्वाभाविक परिणाम है, इसलिए इसके उद्गम के सामान्य परिचय के लिए उस दौर के प्रमुख गीतकारों, खासकर केदारनाथ अग्रवाल, शंकर शैलेन्द्र, शील, साहिर लुधियानवी और शलभ श्रीराम सिंह के कुछ गीत भी इसमें शामिल कर लिए गए हैं।
Author | Edi. Nachiketa |
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Format | Paperback |
ISBN | 978-93-92617-22-5 |
Language | Hindi |
Pages | 236 |
Publisher | Shwetwarna Prakashan |
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