सुधा जी की कविताएँ इनकी सहज दृष्टि की द्योतक हैं। एक तरफ़ इन्होंने राष्ट्र-निर्माताओं की स्मृति में श्रद्धापूर्वक काव्यांजलि के बहाने अपने भावोद्गार अभिव्यक्त किये हैं, वहीं दूसरी ओर रिश्ते-नातों की क्षरणशीलता के मद्देनज़र माँ, पिता बहन, भाई, बेटी, पति, पत्नी, प्रेयसी, प्रियतम वग़ैरह सहदीले संबंधों की गरमाहट का एहसास कराया है। इन्होंने जल, पर्यावरण-प्रदूषण की भयावहता के चित्र उकेरते हुए प्रकृति के साथ सहजीवन का संदेश दिया है। संग्रह में युद्ध की विभीषिकाएँ भी हैं और अमानवीयता की दानवी प्रवृत्ति की भर्त्सना भी। मौसम की क़ुदरती मार भी है और प्रणयानुभूति की शीतल फुहारें भी हैं। आँसू-मुस्कान की तरलता इसमें मौजूद हैं। कलम के साथ कूँची की भी धनी हैं सुधा जी। आज कविता गढ़ने वालों की तो भरमार है, मगर कविताएँ सिरे से ग़ायब हैं। सपाट बयानी के बजाय झीना आवरण और बिम्ब-प्रतीक के माध्यम से अभिव्यक्ति-कौशल कविता को मूल्यवान बनाता है।
-भगवती प्रसाद द्विवेदी
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