इम्कान (Imkan / Abhishek Kumar Shukla ‘Shubham’ )

(1 customer review)

250.00

Buy Now
Category: Tag:

‘इम्कान’ ग़ज़ल संग्रह अभिषेक कुमार शुक्ल ‘शुभम’ का प्रथम ग़ज़ल संग्रह है। अपने शीर्षक के अनुरूप इसमें संभावनाएँ तो हैं ही साथ ही संघर्ष की वो लौ भी है जो अंधकार के बीच मानवीय संवेदना की उम्मीद बनकर हमारे सामने है।
“जुल्म की पतवार दें तो, फूल चुनना
वो हमें हथियार दें तो, फूल चुनना”

“वो ख़ुदा के नाम पर मिसयूज़ करके
रोज़ दंगे चार दें तो, फूल चुनना”

जैसे अशआर कितनी कोमलता से सामाजिक संचेतना को अनुप्राणित कर देते हैं। इनमें एक तरफ सामाजिक विडंबनाबोध सामने आता है तो दूसरी तरफ़ इसी बीच फूल चुनने जैसी बात मानवीय समझ और मानवता की प्रत्युत जाग्रति का आह्वान बन कर हमारे सामने आती है।
तुम्हारे रूप से रौशन हुआ घर
मुझे सूरज से कुछ मतलब नहीं है

जैसे शेर जहाँ प्रेमिल संवेदनाओं को अर्थ प्रदान कर रहे हैं वहीं-
होटल, गाड़ी, बिजनेस अपना चमकाये हैं मुखिया जी
ग्रामसभा को शौचालय में उलझाये हैं मुखिया जी

गद्दी पर गद्दार बिठाकर रोते हो
गुंडों की सरकार बनाकर रोते हो

जैसे अशआर जनमानस में प्राणोष्मा का संचार करने वाले हैं, बदलाव की पहल करने वाले हैं।
इस प्रकार हम देखते हैं कि अभिषेक की ग़ज़लें कोमल संवेदनाओं से लेकर समकालीन विसंगतियों तक अपनी पकड़ को कहीं छूटने नहीं देती हैं। अभिव्यक्ति की नवीनता इन्हें और तीक्ष्ण बनाती है।

शारदा सुमन
संयुक्त निदेशक, कविता कोश

Author

Abhishek Kumar Shukla 'Shubham' )

Format

Paperback

ISBN

978-9395-432-86-3

Language

Hindi

Pages

144

Publisher

Shwetwarna Prakashan

1 review for इम्कान (Imkan / Abhishek Kumar Shukla ‘Shubham’ )

  1. श्रद्धा

    बहुत ही शानदार👌👌

Add a review

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Shopping Cart
Scroll to Top