त्रिलोचना कौर का काव्य संकलन ‘गुज़रते वक़्त में’ समाज में फैली विद्रूपता और विकास की चाहत का आईना है। जीवन के विविध पक्षों का सजीव चित्रण इनकी कविताओं की सबसे बड़ी विशेषता है। इनकी कविताएँ जीवन के व्यापक सरोकारों से जुड़ी हैं जो इन्हें सार्वजनिन और कालातीत बनाती हैं। इनकी कविताओं में इनका व्यक्तित्व एक नये आयाम के साथ उभरता है जो कविताओं को समकालीन भावबोध से भर देती हैं।
स्त्री विमर्श की इनकी कविताएँ स्त्रीवाद से ग्रसित नहीं हैं। इनमें घर-परिवार, समाज है, उसका दुख दर्द, उसकी भावनाएँ प्रतिबिम्बित हुई हैं। इन कविताओं में मानवीय संवेदना और जीवन में आस्था के प्रति नवीन दृष्टिकोण दिखाई देता है जो सृजन को विशिष्टता और रचनात्मकता प्रदान करता है।
इनकी कविताओं में भाषायी विविधता, व्यंग्यात्मक लहजा और अनुभूति की तीव्रता पाठकों को अपने साथ बहा ले जाने में पूर्ण समर्थ है। गंभीर चिंतन की ये कविताएँ निश्चित ही मनन करने योग्य हैं और अपने गुज़रते वक़्त का प्रतिबिम्ब भी।
Trilochana Kaur ka kaavy sankalan ‘guzarate vakt men’ samaaj men faili vidroopata aur vikaas ki chaahat ka aaeena hai. Jeevan ke vividh pakSon ka sajeev chitraN inaki kavitaaon ki sabase badi visheSata hai. Inaki kavitaaen jeevan ke vyaapak sarokaaron se judi hain jo inhen saarvajanin aur kaalaateet banaati hain. Inaki kavitaaon men inaka vyaktitv ek naye aayaam ke saath ubharata hai jo kavitaaon ko samakaaleen bhaavabodh se bhar deti hain.
Stri vimarsh ki inaki kavitaaen streevaad se grasit naheen hain. Inamen ghar-parivaar, samaaj hai, usaka dukh dard, usaki bhaavanaaen pratibimbit hui hain. In kavitaaon men maanaveey sanvedana aur jeevan men aastha ke prati naveen dRiSTikoN dikhaai deta hai jo sRijan ko vishiSTata aur rachanaatmakata pradaan karata hai.
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