मधु प्रधान जी मौजूदा हालात पर सजग हैं, उनकी दृष्टि चारों ओर है जो व्यवस्था की खामियों को देखने में न सिर्फ़ सक्षम है बल्कि चेतना की कंदील जला समाज को राह दिखाने का काम और राह पर लौटने का आह्वान भी करती हैं।
मधु प्रधान जी लंबे समय से गीत सृजन में रत हैं, अत: संग्रह के गीतों में प्रेम गीत अपनी उतनी ही मिठास, उसी दौर की गीत भंगिमा के साथ टँके हैं। हो भी क्यों न! मधु प्रधान जी जिस वय में यह गीत रच रहीं थीं माहौल बड़ा समरस और प्रेमिल रहा होगा, तब ऐसा और इस जैसे तमाम गीत आकार पाये। कृति के गीत, कहन की विरासत को स्वाभाविक रूप से आत्मसात करके आगे बढ़ते हुए प्रतीत होते हैं।
Author | Dr. Madhu Pradhan |
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Format | Paperback |
ISBN | 978-81-192318-3-6 |
Language | Hindi |
Pages | 128 |
Publisher | Shwetwarna Prakashan |
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