सौरभजी की निमाड़ी ग़ज़लों और गीतों में विषयों की विविधता और उनका सुंदर निर्वहन इस संग्रह को एक सुदृढ़ आधार प्रदान करते हैं। जीवन विसंगतियाँ, विरोधाभास और उसकी विद्रुपता इन ग़ज़लों में ईमानदारी से अभिव्यक्त हुई है। ‘दुनिया गोळ परात’ जैसी पंक्ति ‘ग्लोबल विलेज’ के भाव को प्रगट करती है जहाँ सभी मनुष्य एक दूसरे के सुख दुख से जुड़े हैं। सभी की नियति एक सी है। एक साफ स्वच्छ समाज की परिकल्पना और मनुष्य के जीवन को कष्टों से मुक्त रखने की पावन भावना इन ग़ज़लों गीतों में अभिव्यक्त है। मनुष्यता को बचाए रखने की छटपटाहट के साथ उसके मंगल की कामना के भाव उनकी सर्जना के मूल में हैं। जीवन की नश्वरता को वे विस्मृत नहीं करते। एषणाओं से मुक्ति में ही जीवन का आनंद है। सुख की मरीचिका के पीछे दौड़ता, सब कुछ समेटने की भागमभाग में मनुष्य जिन मानवीय मूल्यों को अनदेखा करता है, सौरभजी उस ओर हमारा ध्यान खींचते हैं।
Author | सौरभ लाड |
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Format | Paperback |
ISBN | 978-93-49947-51-1 |
Language | Hindi |
Pages | 80 |
Publisher | Shwetwarna Prakashan |
Genre | ग़ज़ल, गीत |
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