एक नयी शुरुआत (Ek Nayi Shuruaat / Garima Saxena)

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‘एक नयी शुरुआत’ गरिमा जी का दूसरा दोहा-संग्रह जिसमें संकलित दोहे शिल्प और शैली में बिल्कुल सधे हुए हैं और इसकी मारक क्षमता बहुत तीव्र है। दोहा लेखन गरिमा की के लिए महज साहित्य सृजन नहीं है बल्कि इनके दोहे इनके हृदय के भावों का निचोड़ है। इनके अंतर्मन से आँसुओं के जो मोती निकले हैं वो दोहों में शब्द रूप में ढल गये हैं इसलिए इनके दोहे सिर्फ़ चमत्कार उत्पन्न करने वाले नहीं हैं बल्कि संवेदना को सहलाने वाले भी हैं।

‘Ek Nayi Shuruaat’ garima ji ka doosara dohaa-sangrah jisamen sankalit dohe shilp aur shaili men bilkul sadhe hue hain aur isaki maarak kSamata bahut teevr hai. Doha lekhan garima ki ke lie mahaj saahity sRijan naheen hai balki inake dohe inake hRiday ke bhaavon ka nichod hai. Inake antarman se aansuon ke jo moti nikale hain vo dohon men shabd roop men Dhal gaye hain isalie inake dohe sirph chamatkaar utpann karane vaale naheen hain balki sanvedana ko sahalaane vaale bhi hain.

Author

गरिमा सक्सेना

Format

Paperback

ISBN

978-93-92617-16-4

Language

Hindi

Pages

112

Publisher

Shwetwarna Prakashan

4 reviews for एक नयी शुरुआत (Ek Nayi Shuruaat / Garima Saxena)

  1. डॉ.जियाउर रहमान जाफरी

    जितनी बारीकी और समझदारी से गरिमा सक्सेना ने दोहे रचे हैं उतनी ही तल्लीनता, नवीनता और साज-सज्जा के साथ श्वेतवर्णा प्रकाशन ने इसे प्रकाशित भी किया है. गरिमा सक्सेना के दोहों को पढ़कर यह सहसा अंदाजा लगाया जा सकता है कि दोहे निरंतर आगे बढ़ते हुए अब उन हाथों में महफूज हैं जहां उन्हें एक साथ फिर खिलने, बढ़ने और फलने -फूलने का मौक़ा मिल रहा है.

  2. अनिरुद्ध प्रसाद विमल

    गरिमा के नारी पर केंद्रित सभी दोहे एक पर एक हैं। सबसे बड़ी बात संवेदनाओं का प्रगटीकरण जिस रूप में हुआ है वह अतिशय मनोमुग्धकारी है।

  3. Meera

    गरिमा सक्सेना महानगरीय वातावरण में रहकर भी जिस प्रकार ग्रामीण चेतना को महसूस कर रही हैं, स्त्री के दुख दर्द; किसानों की पीड़ा आदि को बिम्बों और प्रतीकों के माध्यम अभिव्यक्त कर रही हैं वह उनके दोहों को श्रेष्ठ बनाता है। मैं पहले भी गरिमा के नवगीत संग्रह ‘है छिपा सूरज कहाँ पर’ के गीतों से प्रभावित हुई हूँ और वैसा ही प्रभाव इस दोहा संग्रह के दोहों का भी है।

  4. राजेन्द्र वर्मा

    इस संग्रह में यों, सामाजिक विसंगतियाँ, पुरुषसत्ता का विद्रूप, नारी-शोषण, खोखले होते जाते रिश्ते-नाते, आदमी का छल-छद्म, राजनीति छल-प्रपंच, सत्ता का चरित्र, पूँजीवाद-बाज़ारवाद, किसान की व्यथा, आम आदमी की नियति, धर्म-पाखंड आदि अनेक विषयों पर दोहे हैं, पर उनमें स्त्री विमर्श की प्रधानता है। कुछ दोहे उद्बोधन के भी मिल जाते हैं। एक दोहा दोहे के शिल्प पर भी है। अनेक दोहों में बिम्ब और प्रतीकों की उपस्थिति दोहों को समृद्ध बनाती है। पुस्तक की छपाई सुंदर है और कलात्मक रंगीन कवर ने संग्रह को आकर्षक बना दिया है। दोहा विधा के उन्नयन और प्रसार में कवयित्री के योगदान हेतु वह बधाई की पात्र है। संग्रह को पाठको के सामने सुरुचिपूर्ण ढंग से लाने हेतु प्रकाशक को साधुवाद!

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