राष्ट्रकवि दिनकर को यूँ तो किसी पंथ या क्षेत्र विशेष मात्र से जोड़ना उनका अपमान है। वे तो संपूर्ण राष्ट्र के हैं और उनकी रचनाएँ जन-जन की, लेकिन जन्मभूमि का महत्व विशेष तो है ही। बेगूसराय की धरती के लिए वे ऐसे सपूत हैं जिससे इस जिले की पहचान है। उनकी जीवन-कथा को दोहों के माध्यम से कहने वाले जनकवि दीनानाथ सुमित्र प्रशंसा के पात्र हैं। इनका साहित्य आम जन की भलाई के उद्देश्य का साहित्य है। इनकी रचनाओं में क्रांति का स्वर है। ये बदलाव को दिशा निर्देशित करने वाले रचनाकार हैं।
Rashtrakavi Dinakar ko yoon to kisi panth ya kshetra vishesh matra se jodna unaka apamaan hai. Ve to sanpoorN rashtra ke hain aur unaki rachanayen jan-jan kee, lekin janmabhoomi ka mahatva vishesh to hai hee. Begoosaraay ki dharati ke lie ve aise sapoot hain jisase is jile ki pahachaan hai. Unaki jeevan-katha ko dohon ke maadhyam se kahane vaale janakavi deenaanaath sumitr prashansa ke paatr hain. Inaka saahity aam jan ki bhalaai ke uddeshy ka saahity hai. Inaki rachanaaon men kraanti ka svar hai. Ye badalaav ko disha nirdeshit karane vaale rachanaakaar hain.
डॉ. प्रेम चन्द्र मिश्र –
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ मात्र एक साहित्यकार ही नहीं बल्कि आज के गवेषकों के लिए ‘दिनकर-वाङ्मय’ जैसे शोध हेतु गवेषणा का नित्य नूतन निरंतर प्रवाहमान विषय-वस्तु बन कर साहित्य और सामाजिक सरोकारों की जिजीविषा प्रशमन का आधार स्तम्भ शिखर पुरुष के प्रतिमान सिद्ध हो रहे हैं। दिनकर साहित्य के समग्र अवबोधन की कल्पना हर कोई साहित्यानुरागी सहृदयी सुधीजन अपने अभीष्ट का अन्तरंग मानता आ रहा है किंतु “स्वयं जानाति स्वमीश्वरः”अर्थात् अपने वैभव को ईश्वर स्वयं ही समझते हैं, अन्य कोई नहीं, इस नियम को चरितार्थ करते हुए दिनकर की समग्र चरित्र और उनकी कृति तथा कीर्ति से दिनकर का पर्याय स्वयं दीनानाथ आदरणीय जनकवि श्री दीनानाथ सुमित्र सुस्नात होकर अन्य जिज्ञासित पात्रों पर अनुग्रह करने हेतु राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की जीवनी और उनके समस्त काव्य कृतित्व का हिन्दी के दोहा छन्द में साङगोपाङ्ग चित्रण सुंदर, सरस और सरल भाषा का प्रयोग करते हुए लोकमंगलकारी का पुनीत कार्य किया है।
प्रस्तुत काव्य में जनकवि ने साहित्य शास्त्र के नियमानुसार अलंकार, रस, छंद, बिंब, प्रतीक और छाया इत्यादि का सार्थक प्रयोग करते हुए जन जन लिए हृदय ग्राही विषय वस्तु को सुदृढ और सहज बोधगम्य बनाते हुए अपनी काव्य-दक्षता एवं काव्यकर्मठता का परिचय दिया है।
Dr. Abhishek Mishra –
प्रस्तुत पुस्तक ” दोहे में दिनकर कथा ” दीनानाथ सुमित्र रचित काव्य पुस्तक है । मुझे लगता है कि हिंदी साहित्य की यह पहली पुस्तक है जिसमें किसी कवि के जीवन संघर्षों को दोहे के माध्यम से अभिव्यक्ति दी गयी है । दिनकरजी जैसे दैदीप्यमान साहित्यिक सूर्य के जीवन संघर्षों को जिस तरह से इस पुस्तक में उकेरा गया है वह अपने आप में काबिलेतारीफ है । पुस्तक पठनीय एवं संग्रहणीय बन पड़ी है । पुस्तक में कुल 100 पृष्ठ हैं और मूल्य है 149 रुपये मात्र जिसे प्रकाशित किया है श्वेतवर्णा प्रकाशन दिल्ली ने । एक श्रेष्ठ पुस्तक के लिए सुमित्र जी को बहुत – बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं ।
दोहों में दिनकर कथा , लिखने चला सुमित्र ।
राष्ट्र – प्रेम की भावना , कवि का जीवन चित्र ।।