दोहे के सौ रंग-2, अपनी शृंखला की दूसरी किताब है। इसमें पहले खण्ड से आगे बढ़ते हुए देश के अन्य सौ चुनिंदा दोहाकारों के दोहे संकलित किये गये हैं। प्रत्येक दोहाकार के २१ चुनिंदा दोहों के पूर्व उनके दोहों की प्रकृति, भाव व शिल्प पर संपादक की संक्षिप्त टिप्पणी भी संकलित है। इस संकलन में दोहे का विस्तृत इतिहास, नियम, होने वाली सामान्य ग़लतियों और प्रकारों पर प्रकाश डाला गया है जो शोध कार्यों और नवोदित लेखकों के लिये सदुपयोगी है।
Dohe Ke Sau Rang -2, apani shRinkhala ki doosari kitaab hai. Is mein pahale khaND se aage baDhte hue desh ke any sau chuninda dohaakaaron ke dohe sankalit kiye gaye hain. Pratyek dohaakaar ke 21 chuninda dohon ke poorv unake dohon ki prakRiti, bhaav v shilp par sanpaadak ki sankSipt TippaNi bhi sankalit hai. Is sankalan men dohe ka vistRit itihaas, niyam, hone vaali saamaany glatiyon aur prakaaron par prakaash Daala gaya hai jo shodh kaaryon aur navodit lekhakon ke liye sadupayogi hai.
मृदुल शर्मा –
श्वेतवर्णा प्रकाशन की एक और शानदार प्रस्तुति “दोहे के सौ रंग” (द्वितीय खंड) के रूप में देखने को मिली। सुप्रसिद्ध नवगीतकार श्रीमती गरिमा सक्सेना द्वारा संपादित इस कृति में हमारे समय के एक सौ चर्चित दोहाकारों के इक्कीस-इक्कीस श्रेष्ठ दोहों को संक्षिप्त/सार्थक संपादकीय टिप्पणियों के साथ प्रकाशित किया गया है। साथ ही, दोहा छंद के उद्भव और विकास पर शोधपूर्ण आलेख के साथ ही गरिमा जी ने दोहा के शिल्प और इसके सृजन में अक्सर हो जाने वाली चूकों की भी विस्तार से चर्चा की है।
इस प्रकार एक ही स्थान पर एक सौ श्रेष्ठ दोहाकारों के भिन्न भिन्न आस्वाद के विविध वर्णी दोहे जहां रसज्ञ पाठक को रस विभोर करने में सक्षम हैं, वही नवोदित रचनाकारों के लिए भी यह पुस्तक बहुत उपयोगी है।
इतनी महत्वपूर्ण कृति के संपादन और प्रकाशन हेतु श्रीमती गरिमा सक्सेना और श्वेतवर्णा प्रकाशन को साधुवाद।
कुँअर उदयसिंह ‘अनुज’ –
मैंने मँगवाया है यह संकलन और पढ़ रहा हूँ। इसके प्रथम खण्ड में मुझे भी स्थान मिला है। दोहा विधा के पाठकों व रचनाकारों के पास तो ये दोनों खंड होने ही चाहिए। सम्पादकीय और आलेख मार्गदर्शन करते हैं। प्रशंसनीय कार्य श्वेतवर्णा प्रकाशन का। गरिमा जी ने बहुत परिश्रम किया है इन दोनों खण्डों के लिए। बधाई शुभकामनाएँ
कृष्ण भारतीय –
कल दोहे के सौ रंग प्राप्त हुई।सार्थक परिश्रम दिखायी देता है गरिमा सक्सैना का। सम्पादकीय पूरी पुस्तक की रूपरेखा आपके सामने खोल देता है। सम्पादकीय बताता है कि कितना अध्ययन किया होगा गरिमा ने। सफल सम्पादन व उत्कृष्ट संग्रह की बधाई व शुभकामनाएं।