‘दोहा तरंगिणी’ में कवि भावना के भीतर जागतिक अनुभवों के नाना मुखी उत्स से लेकर शान्तिमय अवसान तक की यात्रा दिखायी देती है। जगत प्रपंच में फँसे जीव को समस्याओं के सहस्रमुखी अजगर की लपेट से उबारकर उसे शान्ति, सुख और नित्य आनंद की खोज में सहयोग देना इस काव्य में एक समाधान परक अन्त का सुन्दर कलात्मक नियोजन की तरह दिखता है। कामायनी के चिन्ता सर्ग से लेकर आनन्द सर्ग तक की यात्रा जैसा ही कुछ आयोजन इसमें छुपा हुआ प्रतीत होता है। यही कवि कर्म की सफलता भी है। जहाँ समस्याओं के निदान सेलेकर उपचार तक की व्यवस्था उपलब्ध करायी जाय वही विश्वसनीय चिकित्सालय कहा जा सकता है। इस अर्थ में कविवर रमाकान्त शेष जी एक कुशल संजीवन वैद्य की भाँति अपने व्यक्तित्व का गांभीर्य प्रकट करने पर्याप्त सफल रहे हैं। कवि बहुमुखी रचना शीलता और सूक्ष्म निरीक्षण की शक्ति ने इस काव्य संग्रह को हिन्दी प्रेमी पाठकों केलिए पर्याप्त उपादेय बना दिया है।
-डॉ. सच्चिदानन्द देव पाण्डेय
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