डॉ. शंकरमोहन झा का नवचेता नवगीतकार समय की भयावहता और पीड़ा को स्वर देने में सक्रिय है। भयावहता और पीड़ा के अंधेरे परिवेश में भी वह आशावादी है। वह भविष्य की सुनहरी संभावनाओं के प्रति विश्वास जगाता है। वस्तुतः ऐसे नवगीतों में वह ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ का प्रहरी बन उभरता है। जीवन की विसंगतियों, मूल्य-क्षरण, अनास्था और संबंधों में पनपी स्वार्थपरता को उनके नवगीत स्वर देते हैं। नवगीत में शंकर जी की कहन-भंगिमा अपनी है।
Author | Shankar Mohan Jha |
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ISBN | 978-81-19590-21-6 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Pages | 108 |
Publisher | Shwetwarna Prakashan |
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