चिड़ियों के पंख श्वेतवर्णा प्रकाशन की अपराजिता शृंखला की एक महत्वपूर्ण पुस्तक है। इस पुस्तक में मृदुला जी ने अपने संस्मरण के रूप में अपने निजी अनुभवों या यूँ कहें प्रारम्भिक संघर्ष को साझा किया है। साहित्य की विभिन्न विधाओं में आत्मकथा लिखना सच में एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। आत्मकथा व्यक्ति के जीवन से जुड़ी सिर्फ कहानी ही नहीं साथ ही समय एवं परिवेश का ब्यौरा भी होती है। आत्मकथा जीवन अनुभव द्वारा अर्जित नितान्त व्यक्तिगत अनुभव व अनुभूतियों को अभिव्यक्त करती है। लेकिन जब वह संस्मरणों के स्वरूप में अपने समकाल से जुड़ती है एवं अपने साहित्यिक दायित्वों का निर्वहन करने लगती है तो उसमें यथार्थ बोध, शिल्पगत गति के साथ एक सामाजिक उद्देश्य का अतर्निहित होना आवश्यक हो जाता है। मृदुला जी के ये संस्मरण, आत्मकथा के रूप में इन सभी बिन्दुओं पर सफल एवं प्रासंगिक हैं। इसमें मात्र बेटी होने के कारण होने वाली नाइंसाफियों से बाहर निकल अपने छोटे-छोटे पंखों को संपूर्ण आकाश प्रदान करने का संघर्ष है। धर्म, जाति और प्रांतीयता की झूठी दीवारों से बाहर निकल उम्मीदों को यथार्थ की भूमि प्रदान करने की कथायात्रा है। साथ ही खट्टे-मीठे अनुभवों के बीच बचपन की अनबूझी, अनसुलझी स्मृतियों की गंध है।
ChiDiyon ke pankh shvetavarNa prakaashan ki aparaajita shRinkhala ki ek mahatvapoorN pustak hai. Is pustak men mRidula ji ne apane sansmaraN ke roop men apane niji anubhavon ya yoon kahen praarambhik sangharS ko saajha kiya hai. Saahity ki vibhinn vidhaaon men aatmakatha likhana sach men ek chunauteepoorN kaary hai. Aatmakatha vyakti ke jeevan se juDi sirf kahaani hi naheen saath hi samay evan parivesh ka byaura bhi hoti hai. Aatmakatha jeevan anubhav dvaara arjit nitaant vyaktigat anubhav v anubhootiyon ko abhivyakt karati hai. Lekin jab vah sansmaraNon ke svaroop men apane samakaal se juDti hai evan apane saahityik daayitvon ka nirvahan karane lagati hai to usamen yathaarth bodh, shilpagat gati ke saath ek saamaajik uddeshy ka atarnihit hona aavashyak ho jaata hai. MRidula ji ke ye sansmaraN, aatmakatha ke roop men in sabhi binduon par safal evan praasangik hain. Isamen maatr beTi hone ke kaaraN hone vaali naainsaafiyon se baahar nikal apane chhoTe-chhoTe pankhon ko sanpoorN aakaash pradaan karane ka sangharS hai. Dharm, jaati aur praanteeyata ki jhooThi deevaaron se baahar nikal ummeedon ko yathaarth ki bhoomi pradaan karane ki kathaayaatra hai.
ललिता गर्ग –
“किताबों की भाषा, किताबों का प्रेम, उनके आदर्श, त्याग और समाज तो हमारी दुनिया से बिल्कुल अलग होते हैं। भावुकता की भीगी जमीन को जिंदगी की आंच झेलनी ही चाहिए, तभी हम किसी आकार में ढल सकते हैं। जीवन की विभिन्न परिस्थितियों का योग होता है हमारा जीवन। ”
मृदुला जी की ये पंक्तियाँ वही महसूस कर सकता है जिसने जीवन और किताबों दोनों को करीब से महसूस किया हो। यह हर उस स्त्री की कहानी है जो हिस्से में सिर्फ खिड़कियां नहीं चाहती हैं। हर किसी को पढ़नी चाहिए यह पुस्तक।