चश्म-ए-नम (Chashm-E-Nam / Atish Muradabadi)

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फ़िरदौस उसको चाहिये गोरो कफ़न के बाद
जो आदमी न बन सका सारे जतन के बाद

उर्दू अदब की शायरी का मिज़ाज और हिन्दुस्तानी ग़ज़ल की खूबियों वाला यह शेर ‘आतिश’ मुरादाबादी की एक शायर के रूप में पहचान कराने के लिए काफ़ी है।
आतिश कभी पारम्परिक इश्किया शायरी करते नज़र आते हैं तो कभी मानवीय संवेदनाओं और अनन्य अनूभूतियों से समकालीन और सर्वकालिक सत्य को उजागर करते हैं। इन्हें अपनी कहन से दिल तक उतर जाने का हुनर आता है।
परंपरा और आधुनिकता के अनूठे संगम पर खड़ी इनकी शायरी बेपनाह अंधेरे में रोशनी की तलाश करती है। लोगों की संवेदनाओं से जुड़कर नम आँखों से वक़्त की पेचीदगियों का हाले-बयाँ प्रस्तुत करती है।
दो पंक्तियों के कम स्पेस में भी विस्तृत कैनवास पा लेना कोई साधारण बात नहीं है। आतिश के पास यह हुनर है। शायर इसी के लिए मश्क़ करता है।
अंत में उनके एक बेहतरीन शेर के साथ उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएँ..
कौन जीता है यार नफ़रत से
हार जाते हैं सब मुहब्बत से

-राहुल शिवाय

Publisher

Shwetwarna Prakashan

Author

Atish Muradabadi

Format

Hardcover

ISBN

978-81-192312-1-8

Language

Hindi

Pages

128

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