समय के साथ-साथ सब कुछ परिवर्तित होता रहता है। शायद! हस्ताक्षर को छोड़कर? परन्तु यह भी सच है कि मेरे तो हस्ताक्षर भी परिवर्तित होते रहे। मैं परिवर्तन को पूर्णता की ओर पहुँचने तक की प्रक्रिया मानता हूँ। पूर्ण वही है जो अपरिवर्तनशील है। जो परिवर्तनशील है, वह पूर्णता की ओर बढ़ता हुआ कहा जा सकता है। परिवर्तन, अनुकूलन है जबकि पूर्णता, स्थायित्व। इस काव्यरूपी-संग्रह में वही सब दर्ज है- मैंने जो जिया है, भोगा है, जो देखा और महसूस किया है।
Author | सर्वेश कुमार मिश्र |
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Format | Paperback |
ISBN | 978-93-95432-78-8 |
Language | Hindi |
Pages | 108 |
Publisher | Shwetwarna Prakashan |
अंजलि –
लेखक को किताब के लिए बधाई। बहुत समय बाद अलग मिजाज़ की कविताएं पढ़ने को मिलीं। आशा है यह पुस्तक साहित्य प्रेमियों के लिए सुखद अनुभूति देने वाली होगी…