डॉ. मंजु लता श्रीवास्तव की पहचान मुख्य रूप से गीत-नवगीत में नए शिल्प के वैभव को समेटकर मानवीय संबंधों में प्रेम और सौन्दर्य को उजागर करने की सफल कवयित्री के रूप में रही है। मधुकर अष्ठाना के शब्दों में कहें तो-“डॉ. मंजुलता श्रीवास्तव का ज्ञान और परिश्रम समय के परिप्रेक्ष्य में सार्थक है जिनसे उपजी शब्दालंकार भावनाओं में सहजता, सरलता और रसाग्रता उपस्थित है जो रागात्मक अन्तश्चेतना में गहरी पैठ जाती है तथा दूरगामी प्रभाव छोड़ जाती है।”
डॉ. मंजु लता श्रीवास्तव की यही रागात्मक वृत्ति और अन्तश्चेतना जब बच्चों के लिए लिखे गए उनके काव्य में उतरती है तो रसबोध और कल्पनाओं के साथ बचपन का सागर हिलोरें लेने लगता है।
यह सुखद है कि इस समय बालसाहित्य की प्रकाशित पुस्तकों में सबसे अधिक संख्या बाल कविताओं की ही है, लेकिन दूसरी ओर यह पक्ष भी खुलकर सामने आ रहा है कि इन बाल कविताओं में से अधिकांश में छंद-विधान का पालन नहीं किया जा रहा है। यति, गति, लय, तुक के साथ विषय-वस्तु में भी बिखराव नजर आ रहा है। अफसोस तो तब अधिक होता है जब बड़े-बड़े नामधारी कवियों की बाल कविताओं में भी यह दोष सिर चढ़कर बोल रहा है।
लंबे समय से उच्च शिक्षा के क्षेत्र में हिन्दी अध्यापन से जुड़ी डॉ. मंजु लता श्रीवास्तव की बाल कविताओं के संगह ‘बुलबुल का घोंसला’ से गुजरते हुए मैंने पाया कि इस संग्रह की बाल कविताओं में कम से कम छंद-विधान का पूरी तन्मयता के साथ पालन किया गया है। विषयों के चयन में भी उन्होंने नवीनता को प्रधानता दी है। जहाँ-जहाँ परंपरागत विषयों को लिया गया है उन्हें मनोरंजन की चाशनी में डुबोकर बच्चों के मन में उतारने का सफल प्रयास किया गया है।
इस संग्रह के लिए कवयित्री निश्चय ही प्रशंसा की अधिकारिणी हैं। मुझे विश्वास है कि इस संग्रह का बच्चों के साथ-साथ बाल साहित्यकारों द्वारा भी भरपूर स्वागत किया जाएगा।
डॉ. सुरेन्द्र विक्रम
हिन्दी विभागाध्यक्ष, लखनऊ क्रिश्चियन कॉलेज
(लखनऊ विश्वविद्यालय)
Author | Dr. Manju Lata Shriwastava |
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Format | Paperback |
ISBN | 978-81-19231-45-4 |
Language | Hindi |
Pages | 72 |
Publisher | Shwetwarna Prakashan |
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