ई गद्य संग्रह ‘बतकही’ अप्पन अलगे ओज, इंजोत फइला रहल हए। एकरा विसय-वस्तु के विस्तार लमहर आ सामान्य गद्य लिखे स अलगे हए। आदमी के जिनगी से जुटल जरुरिआत सभ्हे तरह के बात-बेहवार एमे समाएल हए। लोक विश्वास, विग्यान के खोज, रोजमर्रा के चीज से इलाज, साहित्यिक कल्पना, मुहावरा, कहाओत के समठगर बेहवार पाठक के बन्हले रहइत हए। आम, जामुन, मध, जिलेबी, खिचड़ी, नून ई समान सऽ के विशेसता के बारीकी लिखइत इलाज में एकर उपयोग के उल्लेख लिखनिहार के ज्ञान आ विवेक के गवाही दे रहल हए। ए सब से जुड़ल मुहावरा आ कहाउत नून के सरीयत आ जिलेबी से कंडलनी-जगनाई अलगे रंग जमा रहल ह ए। श्रेयसी जी के खोजी नजर अपना संस्कृति, परब-तेहवार आ लोक जीवन के प्रभावित करे वाला संस्कारो पर हए। पसरल संस्कृति / अक्षय नओमी / घरी परब / खोंइछा, भइआ दूज / छठ / गोदना आदि के बारे में ओकर एक-एक खूबी, मनावे के कारन, मनावे के तओर तरीका, विधि-विधान ओकर फल प्रभाव सभ्हे के विस्तार से वरनन हिनकर अई में भागीदारी साबित कऽ रहल हए। सुरती फूआ / मुहटेढ़ी चाची / गीता फोगाट / राम संजीवन ठाकुर आदि कहानीनुमा संस्मरन सऽ नया तरह के सस्मरन के नमूना हए जोना में समाज, सरकार आ संस्कार तीनों के मरम्मत कएल गेल हए। खिस्सा आँख के / नाक के महिमा / भिनसरे के बुलनाई / पोसल दुःख / मक्खीचूस / गुरू किसिम-किसिम के / अजगर करे न चाकरी / रंग के रंग आदि आलेख / ललित निबंध में श्रेयसी जी के कविताई देखाई दे रहल हए। जोगीरा सा रा रा रा समाज आ सरकार पर व्यंग्य करे में सफल रचना हए।
Author | Dr. Poonam Sinha 'Shreyasi' |
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Format | Hardcover |
ISBN | 978-81-974259-5-0 |
Language | बज्जिका |
Pages | 136 |
Publisher | Shwetwarna Prakashan |
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