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बार-बार उग ही आएँगे (Bar-Bar Ug Hi Ayenge / Garima Saxena)

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गरिमा ने हिन्दी नवगीत को एक नयी गरिमा दी है। उनके नवगीतों का एक नया मुहावरा है। सरोकारों से सजे उनके नवगीत समकालीन कविता के सारे तकाज़े न केवल पूरे करते हैं बल्कि एक नितांत नयी स्थापना भी देते हैं, जिसमें समय की धड़कनें सुनी जा सकती हैं। मानवीय रिश्तों की एक सहती-सहती सी अनसहती आँच भी इन नवगीतों की अन्यतम ताक़त है।
इन नवगीतों से गुज़रते हुए सृजन के नये आयाम झिलमिलाते नज़र आते हैं। भाव और अनुभाव के अजाने और अदेखे क्षितिज उद्घाटित होते हुए से महसूस होते हैं। सभी नवगीत ज़िन्दगी के उतार-चढ़ाव से वाबस्ता हैं। ये मुखड़े से ही बाँध लेते हैं और विचार की छुपी हुई गलियों का अन्वेषण करते हैं। मूल्यपरक रचनात्मक उपक्रम संग्रह को विलक्षण दीप्ति देते हैं। कई बार गरिमा स्वेटर की ही तरह गीत बुनती हैं।
नये स्वप्न, नयी स्फूर्ति और नये रंग ही गरिमा के नवगीतों की नयी पीठिका रचते हैं, जिनमें रचनाकार की आस्था का अदम्य आलोक है, जो हमारे मन के बियाबान को, बीहड़ों को और अपरिभाषित अंधेरों को भी आलोकित कर देता है।

Author

Garima Saxena

Format

Paperback

ISBN

978-81-983152-7-4

Language

Hindi

Pages

120

Publisher

Shwetwarna Prakashan

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