हमरा लगइअ कि बज्जिकांचल के घर-घर में देवकी सिन्हा जइसन बुढ़-पुरनिया हइए हतन। हो सकइअ अइसन संस्कार-गीत के पोथी सब घर में होई। आई से पचास-साठ साल पहिले तक संस्कार-गीत के बहुत्ते प्रचलन रहे। एक्कर खोज कएल जाए तs संस्कार-गीत के महाग्रंथ बन सकइअ। ई संस्कार-गीत सब बज्जिकांचल के सभ्यता, संस्कार आ संस्कृति के रक्षक हुए। ई लमहर शोध के काम हए। अइसन शोधपरक काम में राजकीय सहयोग जरूरी हए। आई जिनगी के स्तर में सुधार भेलहs। यांत्रिक विकास आ सूचना क्रान्ति के आधुनिक समय में दूरदर्शन आ चलभास सब के मोहित कएले हुए। पारम्परिक संस्कार आ संस्कृति पीछे छुटइत जाइत हए। जवन परम्परा के हम्मर पुरखा संजोग के रखलन ऊ हम भुला गेली। सबके पास समय के कमी हए। धन जुटाबे के होड़ मचल हुए। केतनो धन आ डिगरी जुटा लेल जाए बाकि जे अप्पन परम्परागत संस्कार आ संस्कृति से अनजान हुए, ओकरा में शिष्टाचार आ मानवता के कमी तs होएबे करी।
आई ई जरूरी हए कि अप्पन अप्पन मातृभाषा के ज्ञान प्राप्त करू, इहे मातृभाषा (बज्जिका) में संस्कार आ संस्कृति के खजाना भरल परल हुए।
मनीष –
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संजय वर्मा –
बज्जिका भाषा में विवाह गीत शायद पहिले पहिल् प्रकाशित भेल है ।