सम्पादक
डॉ. रामसनेही लाल शर्मा ‘यायावर’
डॉ. पार्वती गोसाई
आज का युग विज्ञान की गगनचुम्बी उपलब्धियों का युग है। विज्ञान ने मोबाइल और कम्प्यूटर के रूप में एक ऐसा यांत्रिक अजूबा हमें थमा दिया है जिसने पूरी दुनिया के ज्ञान को हमारी मुट्ठी में कर दिया है। विश्व एक गाँव में बदल गया है। इण्टरनेट और सोशल मीडिया की आभासी दुनिया छाया, आभास, गतिशीलता और त्वरा की दुनिया है परन्तु वह आज का सशक्त अभिव्यक्ति का माध्यम है। एक तरह से मोबाइल का आभासी संसार ईश्वर की तरह सर्वव्यापक और सर्वान्तर्यामी हो गया है, हर तरफ उसकी उपस्थिति है। इसका संसार आधी हकीकत आधा फसाना है। यहाँ प्रेम, क्रोध, चिढ़, नाराजी, आरोप, अपनत्व, अनफ्रेण्ड और ब्लॉक जैसा बहुत कुछ है। यहाँ तैरने वाला सच अफवाहों का रस भी हो सकता है और अफवाहें सत्य का सारतत्व भी। इसके माध्यम से ठगी, धोखाधड़ी, जुआ, मक्कारी, षड्यन्त्र, घृणा और अश्लीलता प्रसार जैसा दुर्दान्त्र कार्य भी हो रहे हैं और इसी के माध्यम से शिक्षा, संगीत, अध्यात्म, विज्ञान, बैंकिग और व्यापार जैसे उत्तमकार्य भी सम्पन्न हो रहे हैं। इसी माध्यम के द्वारा शायरी और कविता के नाम से ऊलजलूल बकवास को रचना बताकर साहित्यिक प्रदूषण फैलाया जा रहा है। वहीं इसी माध्यम का सार्थक सदुपयोग करते हुए काव्यशास्त्र और छन्दशास्त्र की शिक्षा देकर नवोदितों को काव्य-रचना में पारंगत भी बनाया जा रहा है।
मोबाइल की शक्ति का सदुपयोग कर सत्साहित्य के प्रचार-प्रसार के साथ काव्य शिक्षा का श्रेष्ठ कार्य भी अनेक साहित्यिक बन्धुओं ने किया है। गीत-नवगीत के क्षेत्र में भी यह कार्य अनेक समूह पूरी ईमानदारी से कर रहे हैं। कहीं गीत की कोई पंक्ति देकर समस्या पूर्ति करायी जाती है और कहीं स्वतन्त्र नवगीत और उनकी समीक्षा होती है। इस सबका परिणाम यह है कि आभासी दुनिया में नवगीत निरन्तर अपनी धमकदार उपस्थिति दर्ज करा रहा है।
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