आचार्य राजशेखर ने आलोचना के चार प्रकार निर्धारित किए हैं- अरोचकी, सतृणाभ्यवहारी, मत्सरी, तत्त्वाभिनिवेशी तत्त्वाभिनिवेशी आलोचक शास्त्रीय अनुशासन से तादात्म्य स्थापित कर स्वयं बोध-वृत्ति को जीवन और जगत से सुसम्बद्ध करता है। लोक की आस्वादकारिणी वृत्ति से सम्बन्ध रखते हुए कल्याणकारिणी मानव चेतना का विकास तत्त्वाभिनिवेशी आलोचक के लिए वरेण्य रहा है। ‘आलोचना के विविध आयाम’ डॉ. राजेश कुमार की ऐसी कृति है, जिसमें तत्त्वाभिनिवेशी आलोचक की प्रज्ञा भासमान है। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, महाकवि नाथूरामशंकर शर्मा ‘शकर’, मैथिलीशरण गुप्त, त्रिलोचन, नागार्जुन, डॉ. मलखान सिंह सिसौदिया, धूमिल इत्यादि के काव्य बोध का सम्यक् अनुशीलन इस कृति में उपलब्ध है। भूमण्डलीकरण और मीडिया के परिदृश्य में बाजारवाद के खतरों की ओर भी स्पष्ट निदर्शन है। प्रगतिशीलता, आधुनिकता, समकालीनता आदि की अवधारणाओं के निकष पर आलोचक का विवेक नवजागरण के विविध प्रतिमानों का दिग्दर्शक है। स्त्री-विमर्श के साथ-साथ पुरुष-विमर्श की चर्चा भी अत्यंत प्रासंगिक है। आंतरिक सुरक्षा और आतंकवाद के परिप्रेक्ष्य में काव्य की उपादेयता का जयनाद है।
उत्तर आधुनिकता के नकारात्मक परिदृश्य पर योग-दर्शन के सार्थक-निरूपण के साथ ही समकालीन हिन्दी कवियों के काव्य का मर्मस्पर्शी विवेचन-विश्लेषण भी इस कृति में विद्यमान है। साहित्य के विचारशील अध्येताओं और आलोचकों के लिए ‘आलोचना के विविध आयाम’ पठनीव और विचारणीय कृति है।
Dr. Kamlesh singh –
Good
Vedansh Bhardwaj –
‘आलोचना के विविध आयाम ‘डॉ राजेशकुमार की उत्कृष्ट आलोचना की किताब है l इसमें आचार्य मम्मट की शैली भासमान है l हिंदी आलोचना को इससे बहुत लाभ मिलेगा l