‘कुंडलिया छंद : एक विवेचन’ कृति पर काम करते हुए विभिन्न आलेखों हेतु सामग्री संकलित करने के लिए जब मैंने विभिन्न कुंडलिया संकलनों एवं पत्रिकाओं के कुंडलिया विशेषांकों पर दृष्टिपात किया तो यह बात उभरकर सामने आई कि आधी आबादी कुंडलिया सृजन के क्षेत्र में सक्रिय तो है लेकिन संकलनों एवं पत्रिकाओं में उनकी उपस्थिति नगण्य है। फिर भी थोड़े-बहुत जो भी महिला कुंडलियाकार हैं यदि इन सबको एक पुस्तक में स्थान देकर एक साथ लाया जाए तो जब भी ‘समय’ भविष्य में कुंडलिया छंद का मूल्यांकन करेगा तो इस छंद के क्षेत्र में महिलाओं के योगदान को रेखांकित करने में आसानी होगी। इसी कल्पना का साकार रूप है यह पुस्तक।
-डॉ. बिपिन पाण्डेय
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