बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी डॉ. पी.पी. सिन्हा अपने सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक व साहित्यिक गतिविधियों तथा सहभागिता के लिए कोशी अंचल में चर्चित हैं। वे ऐसे साहित्यकार हैं जो सामाजिक गतिविधियों में तल्लीन होकर न सिर्फ समाज से सीखते हैं बल्कि उसे शिक्षित करने का भी कार्य करते हैं। अपनी पुस्तक ‘विश्व पर भारी कोरोना महामारी’ के माध्यम से उन्होंने अपने कर्तव्यों का पुन: निर्वहन ही किया है।
यह पुस्तक कोरोनाकालीन उनके लिखे गये आलेखों और लघुकथाओं का संग्रह है, जो आने वाले वक्त में स्वामी विवेकानंद के ‘प्लेग मेनीफेस्टो’ और फणीश्वरनाथ रेणु जी की कहानी ‘पहलवान की ढोलक’ की भाँति ही लोगों का मार्गदर्शन करेगा। यह पुस्तक एक समय का
साहित्य भर नहीं है बल्कि वह इतिहास है जिसमें कोरोना को झेलते मनुष्य और इस समकालीन समय का सत्य उद्धृत हुआ है।
यह पुस्तक भविष्य में उत्पन्न होने वाली ऐसी परिस्थियों और महामारियों के लिए हमें
तैयार करने वाली है, हमारे अंदर प्रतिरोध का इम्यून सिस्टम विकसित करने वाली है। इसे बीतते समय के साथ अप्रासंगिक मानना सर्वथा अनुचित होगा। डॉ. पी. पी. सिन्हा की दूरदर्शिता के लिए उन्हें साधुवाद। उम्मीद है वे मानव कल्याण के लिए निरंतर प्रयत्नशील व साहित्य के लिए रचनाशील रहेंगे…
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