झोपड़ी गिरवी पड़ी है ( Jhopdi Girwi Padi Hai / Srikant Tiwari ‘Kant’)

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ग़ज़ल अब प्रेमी प्रेमिकाओं के संवाद में हटकर सामाजिक चेतना, शोषण, भूख और भ्रष्टाचार के विरुद्ध समाज का दर्पण बनती जा रही है। इस जन जागरण और शोषण को अपनी ग़ज़लों में भरपूर रूप से उतारने में श्रीकांत तिवारी काफी माहिर हैं। प्रस्तुत पुस्तक ‘झोपड़ी गिरवी पड़ी है’ मैं कवि ने जो कुछ भी वास्तव में देखा है या अपने जीवन में अनुभव किया है उसे सफलता से प्रस्तुत किया है। उन्होंने व्यांग्यात्मक शैली इस संग्रह को और भी प्रभावी बना देती है।

Author

श्रीकान्त तिवारी ‘कान्त’

Format

Hardcover

ISBN

978-81-971819-4-8

Language

Hindi

Pages

112

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