अनिरुद्ध प्रसाद विमल और उनका उपन्यास ‘जैवा दी’ (Jaywa Di / Dr Radheshyaam Choudhary)

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जीवनकथा कभी-कभी समयकथा-देशकथा बन कर मृत्युंजय उपन्यास का रूप लेती है। अनिरुद्ध प्रसाद ‘विमल’ की कृति ‘जैवा दी’ इसी तथ्य का पुष्ट प्रमाण है। अंगिका में ऐसी कृति का आना अंगिका भाषा और साहित्य को कालजयी होने का वरदान देने की तरह भी है।
प्रस्तुत ग्रंथ में वैसी समीक्षाओं और सम्मतियों को संकलित करने का प्रयास किया गया है, जो सिर्फ ‘जैवा दी’ से संबंधित है। पत्र, पत्रिकाओं में प्रकाशित इन आलेखों के प्रकाशन से आने वाली पीढ़ी को इस उपन्यास को जानने समझने में सुविधा होगी एवं एम.ए. अंगिका के पाठ्यक्रम में शामिल होने के कारण छात्र-छात्राओं को भी लाभ होगा।

ISBN

978-81-973380-8-3

Author

डॉ. राधेश्याम चौधरी

Language

Hindi

Pages

164

Publisher

Shwetwarna Prakashan

Format

Hardcover

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