डॉ. नीरज कुमार सिन्हा एक प्रतिभाशील युवा साहित्यकार हैं। हिन्दी और अंगिका भाषा की विभिन्न विधाओं में निरंतर लेखन के साथ ही भाषा और साहित्य के लिए उनका समर्पण भाव प्रभावित करता है। चीज़ों को देखना, समझना, उसपर विचार करना उनके स्वभाव मेम हैं। उनका मैत्रिभाव उनके व्यक्तित्व की पूँजी है। वे जब किसी के सम्पर्क में आते हैं तो पूर्ण रूप से उस सम्बन्ध को निभाते हैं, जीते हैं। अपनी समीक्षा और आलोचनाओं में भी उन्होंने ऐसा ही किया है। उन्होंने जिनभर भी लिखा है डूबकर लिखा है। लगभग 35 वर्ष की उम्र में दो दर्जन से अधिक शोध पत्रों का वाचन और प्रकाशन साधारण नहीं है। उनके अकादमिक अनुभवों का समुचित लाभ उन्हें आलोचना और समीक्षा लिखते हुए मिला है। कृतित्व से व्यक्तित्व और व्यक्तित्व से कृतित्व तक पहुँचना उन्हें भलिभांति आता है। उनका समीक्षक सिर्फ़ शाब्दिक अर्थों के विश्लेषण में अपनी रुचि नहीं रखता है बल्कि उसकी अनसुलझी गाँठों तक पहुँचने का प्रयास करता है। यह यात्रा उन्हें उस कवि की जीवन यात्रा तक ले जाती है। ऐसी यात्रा करने वाला यह विलक्षण आलोचक तितली की भांति मकरंद नहीं चुराता है बल्कि हवा की भांति पराग और सुगंध को एक मन से दूसरे मन तक पहुँचाता है। अपनी साहित्यिक सहयात्रा में उनका यह योगदान श्लाघनीय है।
-राहुल शिवाय
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