गणेश गंभीर सिर्फ़ लेखक ही नहीं लेखकीय विचारों पर तर्क और विमर्श करने वाले ग़ज़लकार हैं। उनके स्वभाव की तरह उनकी ग़ज़लें भी अलहदा हैं। वे कहते हैं- ‘हिन्दी ग़ज़ल-लेखन जो अवलोकनाधारित निष्कर्ष के स्थान पर अवलोकन-संधान की पद्धति का अनुसरण करता है, मुझे स्वीकार नहीं है। जो हमारे सामने है, से हम विमुख कैसे हो सकते है। जब हमें मालूम है कि हत्यारा कौन है तो फिर किस तफ्तीश की ज़रूरत बचती है। खेद है जिस हत्यारे को सब जानते है उसे न जानने का दिखावा किया जा रहा है, इतनी पाखण्डपूर्ण प्रतिबद्धता का निषेध होना ही चाहिए। यही मेरा काव्य- मंतव्य है और यही मेरी काव्य-आभ्यंतरिकता है। मेरे इस संग्रह की ग़ज़लें इसकी पुष्टि करेंगी ही।’
Author | Ganesh Gambheer |
---|---|
Format | Paperback |
ISBN | 978-81-977075-3-7 |
Language | Hindi |
Pages | 112 |
Publisher | Shwetwarna Prakashan |
Reviews
There are no reviews yet.