हिन्दी ग़ज़ल और डॉ. किशन तिवारी(Hindi Gazal Aur Kishan Tiwari / Edi. Hareram Sameep)

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हिन्दी ग़ज़ल आज अपनी लोकप्रियता के शिखर पर है। हिन्दी ग़ज़ल ने आज उर्दू परंपरागत ग़ज़ल के रूमानी कथ्य को बहुत पीछे छोड़ कर तार्किक दृष्टि से जीवन के यथार्थ को चित्रित करने का सबसे जरूरी कार्य प्रारम्भ किया है। आज के ग़ज़लकारों ने आम आदमी की भाषा में ग़ज़ल के भाव-पक्ष और कला-पक्ष की अभिव्यक्ति में अनेक नए सोपान अर्जित कर लिए हैं। दुष्यंत के बाद हिन्दी ग़ज़ल को विकसित करने में जिन अनेक ग़ज़लकारों ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है, उनमें से एक नाम है, भोपाल के डॉ. किशन तिवारी।
डॉ. तिवारी के अब तक छह ग़ज़ल संग्रह तथा एक बुन्देली गीत संग्रह प्रकाशित हुए हैं। इसके साथ ही उन्होंने ‘आधुनिक हिन्दी ग़ज़ल’ विषय पर पीएच. डी. उपाधि हेतु, सन 1995 में शोध कार्य कर हिन्दी ग़ज़ल को नए सिरे से परिभाषित भी किया है। इनकी ग़ज़लें अपने आसपास के समाज और जीवन में हो रही घटनाओं को अपनी ग़ज़ल का विषय बनाती हैं। अर्थात उनकी ग़ज़लों का कथ्य उनके परिवेश से सन्नद्ध रहा है, जिसको उन्होंने बड़ी कलात्मकता से चित्रित किया है। डॉ. तिवारी के यहां आम आदमी की पीड़ा है, बुनियादी समस्याएँ जैसे भूख अन्याय और शोषण के विरुद्ध निरंतर आवाज़ें भी हैं, जो सामाजिक परिवर्तन की नयी भूमिका निर्मित करती हैं। यही कारण है कि उनका लेखन महत्वपूर्ण है और गहरी पड़ताल की माँग करता है।

Author

सं. हरेराम समीप

Format

Hardcover

ISBN

978-93-491365-5-7

Language

Hindi

Pages

276

Publisher

Shwetwarna Prakashan

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