सोनरूपा विशाल वर्तमान दौर की एक महत्वपूर्ण ग़ज़लकारा हैं। इनकी ग़ज़लों की विषय-वस्तु का संसार बहुत व्यापक है, जिसमें बड़ी मार्मिकता के साथ माँ भी आती हैं, पिता भी आते हैं। प्रेम, प्रकृति, सरहद पर तैनात सैनिकों के प्रति सम्मान, स्त्री विमर्श, रिश्तों-नातों की स्थिति, व्यवस्था पर प्रश्न, इन सब पर आपने एक से बढ़कर एक शेर कहे हैं। आपकी ग़ज़लों के कथ्य का एक विशिष्ट पक्ष है सकारात्मकता, जो विषम परिस्थितियों में भी हमें हौसला प्रदान करता है, उम्मीद बँधाता है और अपने अभीष्ट तक पहुँचने के लिए मुश्किलों से लड़ने-जूझने की शक्ति देता है।
इन ग़ज़लों में सोनरूपा के जीवन और उनकी शायरी, दोनों का अनुभव स्पष्ट दिखाई देता है तभी एक सूक्ष्म प्रेक्षक की तरह वह देश-दुनिया और अपने आसपास के समाज की विसंगतियों और विडम्बनाओं की पड़ताल करती हैं और तटस्थ रहते हुए उसे हमारे समक्ष अपने मौलिक लहजे में रवानी के साथ प्रस्तुत करती हैं।
Author | सोनरूपा विशाल |
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Format | Paperback |
ISBN | 978-81-98061-33-1 |
Language | Hindi |
Pages | 112 |
Publisher | Shwetwarna Prakashan |
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