पुनर्नवा (Punarnava / Edi. Dr. Geeta Sharma)

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विकलांगता किसी की व्यक्तिगत समस्या नहीं है बल्कि यह समाज के एक बड़े वर्ग की बात है जिस पर निश्चित ही विमर्श किया जाना चाहिए। इस विमर्श को केन्द्र में रख कर लिखी गयी कहानियाँ विकलांगता को दिव्यता साबित करने वाली कोरी कल्पनाएँ भर नहीं हो सकतीं। इसके लिए वस्तुस्थिति और सामाजिक वातावरण का चित्रण आवश्यक है। सुखद अंत की कल्पनाओं से कहीं अधिक सुखद अंत के लिए प्रेरित करती कहानियों की आवश्यकता है जो संवेदनशील मन को झकझोर सकें, समाज को विकालांगजन की वास्तविक स्थिति से परचित करा सके। ऐसी कहानियाँ जो उनके प्रति प्रेम, समानता, सद्भाव और संवेदना का वही भाव जगा सके जो हर मनुष्य का मौलिक अधिकार है।
डॉ. गीता शर्मा जी ने विकलांगता केन्द्रित साहित्य के विकास की दिशा में महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। आपने न सिर्फ़ विकलांगजन को केन्द्र में रखकर कहानियाँ लिखी हैं बल्कि अन्य लेखकों द्वारा लिखी गयी विकलांगता-विमर्श की कहानियों को एक जगह संकलित करने का महती कार्य भी किया है। इस तरह के प्रयासों से विकलांगता-विमर्श को आगे बढ़ाने की हमारी मुहिम को बल मिलता है। प्रस्तुत कहानी संकलन ‘पुनर्नवा’ इसी दिशा में एक और कदम है।

Author

Editor Geeta Sharma

Format

Paperback

ISBN

978-81-984164-7-6

Language

Hindi

Publisher

Shwetwarna Prakashan

Pages

224

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