छम-छम करती आई निंदिया (Chham-Chham Karti Aayi Nindiya / Umashanakar Shukla ‘Darapan’)

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उमाशंकर शुक्ल ‘दर्पण’ द्वारा लिखी गई ये लोरियाँ सिर्फ़ लोरियाँ ही नहीं हैं बल्कि इनमें बच्चों की शिक्षा पर भी पूरा ध्यान है। कवि ने क्या ख़ूब कल्पना की है कि नींद आए तो फिर थोड़ी बहुत पढ़ाई भी हो- “क ख ग घ और ककहरा, मीठा-मीठा गाना। निंदिया रानी-निंदिया रानी, धीरे-धीरे आना। गिनती और पहाड़े पढ़कर, मुन्ने को सुनाना। निंदिया रानी-निंदिया रानी धीरे-धीरे आना।”
लोरियों को सुनकर बड़े होते हुए बच्चों के मन में कुलबुलाते सवाल भी यहाँ हैं जो उन्हें प्रेरित करेंगे। जिज्ञासु बनाएँगे। ‘दादी कबसे पूछ रहा हूँ’ एक बेहतर बाल कविता है जिसमें मछली के घर को लेकर संवेदना से भरे नन्हे सवाल भरे पड़े हैं- “दादी कबसे पूछ रहा हूँ, मम्मी नहीं बताती है, निंदिया रानी, मछली रानी के घर कैसे जाती है। कैसे जल के अन्दर होगा उनका नरम बिछौना, रखती कहाँ बताओ अपना तकिया और खिलौना। कहाँ पे झूला उनका होगा, निंदिया जहाँ झुलाती है। दादी कबसे पूछ रहा हूँ मम्मी नहीं बताती है। जल में क्या-क्या खाती है कैसे उन्हें पकाती है, जल में बोलो सड़क कहाँ है? जिस पर आती-जाती है। मेढक टर्र-टो गीत सुनाते, कैसे उन्हें सुलाती है।”
‘निंदिया रानी का अखबार’ भी उनकी अलग तरह की रचना है जिसमें नींद नगर की सुंदर कल्पना है।
ध्वन्यात्मक शब्दों के प्रयोग से भी उनकी लोरी का वैशिष्ट्य बढ़ा है। उनमें शिशुगीत का भी आनंद समाहित हुआ है।

Author

Umashankar Shukla 'Darpan'

Format

Paperback

ISBN

978-81-978455-3-6

Language

Hindi

Pages

120

Publisher

Shwetwarna Prakashan

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