हिन्दी बाल साहित्य का बहुमुखी विकास हो रहा है, किन्तु एक बहुत बड़ी कमी है। यह कमी है-समीक्षकों की हिन्दी बाल साहित्य में समीक्षकों का अभाव-सा है। इसके परिणाम स्वरूप बाल साहित्य में शोध और समीक्षा ग्रन्थों की भारी कमी है। जहाँ एक ओर हिन्दी साहित्य में शोध और समीक्षा ग्रन्थों की संख्या हजारों में है, वहीं दूसरी ओर हिन्दी बाल साहित्य में इनकी संख्या पाँच सौ भी नहीं होगी।
डॉ. रीना सोलंकी की पुस्तक ‘परशुराम शुक्ल की बाल कविता के विविध आयाम’ इस दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण पुस्तक है। यह हिन्दी बाल साहित्य में समीक्षा और शोध की पुस्तकों की कमी को पूरा करने में अपना योगदान देगी।
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