डॉ. श्रीमती प्रेमलता त्रिपाठी जी ने अपने प्रबन्धकाव्यकविता ‘रामसखा निषादराज’ को सकारात्मकता के साथ सुखान्त बनाया है और कथा को दलित विमर्श से जोड़कर प्रासंगिक भी बनाया है। इस प्रबन्धकाव्य में ऊँच-नीच छोटा-बड़ा, छुआ-छूत आदि के विरुद्ध निषादराज एवं श्रीराम को उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत किया है। इस प्रबन्ध काव्य में जहाँ सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति का गायन है वहीं सामाजिक एकता, समरसता और सद्भाव का संदेश भी निहित है जिसकी वर्तमान में गम्भीर आवश्यकता है। अंत में यह कथन अतिरेक नहीं होगा कि कवयित्री ‘असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मामृतं गमय’ का भी संदेश देना चाहती है।
– मधुकर अष्ठाना
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