इतराती बलखाती ग़ज़लें (Itrati-Balkhati Gazalein / Ramesh Kanwal)

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‘इतराती-बलखाती ग़ज़लें’ राग-अनुराग, विरह-मिलन की ग़ज़ल-यात्रा भर नहीं है। प्रेम इस यात्रा का पड़ाव अवश्य है। इन ग़ज़लों में सामाजिक, राजनैतिक, बाज़ारवाद, मानवीय संवेदनहीनता तथा व्यवस्थागत विसंगतियों को गंभीरता से चित्रित किया गया है जो कभी यथार्थ के दर्पण की तरह प्रतीत होता है तो कभी प्रतिरोध के रूप में सामने आता है।
हिन्दी-उर्दू की साझी विरासत के रूप में हिन्दुस्तानी भाषा में कही गई ये ग़ज़लें आम-जीवन का रूप-रंग और स्वभाव प्रस्तुत करने वाली हैं। तत्सम, तद्भव, देशज, विदेशज सभी शब्दों के सटीक प्रयोग इनकी ग़ज़लों को शाब्दिक विविधता प्रदान करते हैं।
संस्कृति के उत्थान और जागरण के प्रति समर्पित ये ग़ज़लें नवीनता को आत्मसात करने वाली हैं। भाव और अनुभूति की सटीक अभिव्यंजनाओं के साथ प्रेम का केन्द्रीय स्वरूप इसे बहुपाठी और बहुश्रुत बनाने वाला है।

Author

Ramesh Kanwal

Format

Hardcover

ISBN

978-81-976575-8-0

Language

Hindi

Pages

152

Publisher

Shwetwarna Prakashan

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