डॉ. ऋषिपाल धीमान की ग़ज़लों की लोकप्रियता उनकी गहरी मानवीय चेतना का प्रमाण देती है। इस तरह वे एक संवेदनशील और जागरूक ग़ज़लकार के रूप में हमारे समक्ष आते हैं। उनकी ग़ज़लों के शेर गहरे भावबोध और सुदृढ़ आत्मविश्वास के साथ उतरे हैं। वे अपने समाज की धड़कनों को बखूबी स्पर्श करते हैं तथा पूरी मार्मिकता के साथ पाठक को प्रभावित करते हैं।
जहाँ तक कथ्य की बात है, डॉ. धीमान अपने लेखकीय सरोकारों के प्रति पूर्णत: सचेत हैं। उन्होंने अपने परिवेश जैसे- घर-परिवार, समाज, प्रकृति, धर्म, राजनीति आदि बहुविध क्षेत्रों से सम्बंधित विभिन्न विचारों और भावनाओं को अपनी ग़ज़लों के शेरों में बखूबी ढाला है। विशेष रूप से वैयक्तिक और पारिवारिक सम्बंधों को लेकर उनके बड़े ही आत्मीय व भावपूर्ण शेर सृजित हुए हैं। धीमान की ग़ज़ल-भाषा सहज, बोधगम्य और सामान्य बोलचाल की जनभाषा है। यह भाषा ग़ज़लकार की जनता के प्रति गहरी प्रतिबद्धता को स्थापित करती है। उनके ये शेर हिन्दी ग़ज़ल की उर्वर जमीन तैयार करते नज़र आते हैं, जो इसे और अधिक हरा-भरा बनाती है।
डॉ. धीमान की इसी ग़ज़लगोई को समझने और आत्मसात करने के उद्देश्य से हिन्दी के अनेक विद्वानों से उनकी ग़ज़लों पर केन्द्रित आलेख आमंत्रित किये गए और सभी ने पूरे उत्साह और गंभीरता से ये लेख प्रेषित किये, जिन्हें मैं इस पुस्तक में सहर्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ। वाकई इन आलेखों के द्वारा यहाँ ग़ज़लकार की एक मुकम्मल शिनाख्त की गई है। उनके व्यक्तित्व, कृतित्व और उसके महत्व को समझने के लिए हमने पुस्तक को पाँच खण्डों में विभाजित किया है-
पहला परिचय खण्ड, इसमें डॉ. धीमान का जीवन परिचय, उनका व्यक्तित्व और उनकी जीवन-दृष्टि को प्रस्तुत किया गया है। दूसरे आलेख खण्ड में विद्वान आलोचकों द्वारा डॉ. धीमान की ग़ज़लगोई पर बहुआयामी आकलन प्रस्तुत किये गए हैं। तीसरा समीक्षा खण्ड है, जिसमें हमने उनके सभी छह ग़ज़ल संग्रहों की दो-दो समीक्षाएँ प्रस्तुत की हैं। चौथा खण्ड साक्षात्कार खण्ड है, इसमें दो चर्चित ग़ज़लकारों द्वारा डॉ. धीमान से अत्यंत सारगर्भित बातचीत को दर्ज़ किया है और पाँचवाँ रचना खण्ड है, इसमें उनकी चर्चित बीस ग़ज़लें प्रस्तुत की गई हैं।
हरेराम समीप
फ़रीदाबाद
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