आज हिन्दी ग़ज़ल समकालीन हिंदी कविता की एक प्रमुख विधा बन गई है, जिसका मुख्य स्वर सामजिक सरोकार है। हिंदी ग़ज़लकार हमारे समाज और आम आदमी से जुड़े विभिन्न विषयों पर अपने-अपने ढंग से शे’र कह रहे हैं। ओमप्रकाश यती का नाम हिंदी ग़ज़ल के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण रचनाकार के रूप में लिया जाता है। उनकी ग़ज़लें वास्तविकता और यथार्थ के धरातल से उपजती हैं। उनमें न कोरी कल्पनाशीलता होती है न कोई शब्दाडम्बर ही होता है। सीधी-सच्ची बात सधे हुए शिल्प में आती है। लम्बे समय तक गाँव में रहने और ग्रामीण जीवन से लगातार जुड़े रहने के कारण उनकी ग़ज़लों में वहाँ की वास्तविक स्थितियाँ, सुख-दुःख, आशा-निराशा, जीवन-संघर्ष, गाँव और शहर के अंतर्द्वन्द्व, किसान-मजदूर की दशा आदि शिद्दत के साथ आते हैं। वे अपने समय को लेकर चिंतित हैं और प्रायः अछूते विषयों को अपनी ग़ज़ल में बाँधने का प्रयास करते हैं। वे ग़रीब और सामान्य जन के प्रति अपनी स्पष्ट प्रतिबद्धता व्यक्त करते चलते हैं। ये ग़ज़लें इसलिए भी प्रभावित करती हैं कि इनकी भाषा सरल है, इनमें देशज शब्दों, मुहावरों और कहावतों का सटीक प्रयोग है। इनके बिम्ब और प्रतीक हमारे आस पास के हैं।
Author | ओमप्रकाश यती |
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Format | Hardcover |
ISBN | 978-81-97181-99-3 |
Language | Hindi |
Publisher | Shwetwarna Prakashan |
Pages | 104 |
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