आज हमारे देश में किसी प्रकार का अभाव नहीं है और यदि कोई अभाव है तो वह है चरित्रवान नागरिकों का। इसके लिए आज के उन बच्चों में सच्चरित्रता के संस्कार डालना आवश्यक है जो कल के उत्तरदायी नागरिक बनेंगे। इस समस्या को भली प्रकार समझने और उसका निदान प्रस्तुत करने का एक सराहनीय कार्य सुकवि डॉ. वेद प्रकाश अग्निहोत्री ने किया है जिसे उन्होंने बालकविता-संग्रह ‘कविता की गुल्लक’ के रूप में प्रस्तुत किया है। सरल सुबोध भाषा में रची गयी कविता बाल-मन में सुविचारों को संप्रेषित करने का एक सशक्त माध्यम है जिसका सार्थक समुचित उपयोग इस कृति की रचनाओं में किया गया है।
इस कृति की रचनाएँ वस्तुतः किशोरावस्था के बच्चों को लक्ष्य कर लिखी गयी हैं और इसी वय के अनुरूप आवश्यक विषयों का समावेश कर देश के भावी नागरिकों को देश की समस्याओं के प्रति जागरूक करने का सराहनीय प्रयास किया गया है।
सामान्यतः सभी रचनाएं प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से नैतिकता की उन्नायक हैं किन्तु पद्य कहानी राजा हरिश्चंद्र, ध्रुवतारा, हनुमान, किसान, धरती शीर्षक रचनाएँ विशेषतः नवांकुरों में नैतिक मूल्यों के साथ भारतीय संस्कारों की स्थापना करने में समर्थ हैं। बालमनोविज्ञान के मर्मज्ञ डॉ. अग्निहोत्री ने नैतिकता का सन्देश खेल-खेल में कुछ इस प्रकार संप्रेषित किया है कि वह बाल-पाठक के ह्रदय में अनायास ही उतर जाता है।
कृति की भाषा सरल सुबोध हिन्दी की खड़ी बोली है जिसमें रोचकता और सहजता को वरीयता देने के उद्देश्य से अन्य भाषाओं के शब्दों को उदारता से गोद लिया गया है।
बालकविता रचने के लिए कवि को सबसे पहले बाल-मन में उतरना होता है और उसी की भाषा का प्रयोग करते हुए ऐसे आधार-छन्दों का चुनाव करना होता है जो उनके अनुकूल हों। इस दृष्टि से कृतिकार द्वारा प्रयुक्त किये गये चौपाई, जयकरी और पदपादाकुलक छन्द सर्वथा उपयुक्त हैं और इसके साथ अंगीकृत काव्य विधा अनुगीतिका बहुत प्रभावशाली बन पड़ी है।
-आचार्य ओम नीरव
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