किसी भी विधा के जीवित व चिरकालीन होने के लिये आवश्यक है उसका समकालीनता बनाये रखना। आज दोहा विधा भी अपने में विषयगत व भाषागत समकालीनता को समाहित करके निरंतर फल-फूल रही है। ऐसे ही समकालीन दोहों का संग्रह है ‘क़द बौने साये बड़े’, जिसके दोहाकार हैं वरिष्ठ नवगीतकार शैलेन्द्र शर्मा जी।
शैलेन्द्र शर्मा जी को असाधारण और अप्रस्तुत कथ्य को साधने में महारथ हासिल है। दोहे की पंक्तियों के संधान में वे अर्जुन की भाँति अपने लक्ष्य को चिड़िया की आँख पर केन्द्रित कर लेते हैं। दोहा कभी भी सपाटबयानी नहीं हो सकता। उसकी विशिष्टता सदैव ही उसकी लक्षणा, व्यंजना या उदाहरण के साथ प्रस्तुत करने की कला में रही है। पहली पंक्ति के बाद यदि दूसरी पंक्ति को सुनने की उत्सुकता न हो या दूसरी पंक्ति सुनने के उपरान्त आप स्वयं को अचंभित या आश्चर्यचकित अनुभव न करें तो दोहा साधारण वाक्य से ज़्यादा कुछ नहीं रह जाता है। इस बात की समझ रखने वाले शैलेन्द्र शर्मा के दोहे ‘नावक के तीर’ की भाँति ही प्रतीत होते हैं।
Author | शैलेन्द्र शर्मा |
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Format | Hardcover |
ISBN | 978-81-19590-53-7 |
Language | Hindi |
Pages | 104 |
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