यह सुखद संयोग ही है कि इस विचित्र परिस्थिति में कविवर श्री विजय बागरी जी जैसे रचनाकार अपनी समृद्ध काव्य क्षमता के साथ काव्य साधना में तल्लीन हैं। स्वभाव से सहज, संवेदनशील, विनम्र, जिज्ञासु, भाषाविद और ग्रामीण परवेश में रचे-बसे श्री विजय बागरी एक असाधारण स्पृहणीय विशिष्ट व्यक्तित्त्व संपन्न रचनाकार हैं। उनकी रचनाओं में उनके ये उल्लेख्य गुण सहज रूप में प्रतिष्ठित और अभिव्यक्त हुए हैं। विजय बागरी के जिन काव्य संग्रहों का प्रकाशन पूर्व में हुआ है, उनकी प्रतिष्ठा राष्ट्रीय स्तर पर सहृदय पाठकों और नीर-क्षीर विवेकी विद्वज्जनों में प्रखर प्रशंसा के साथ हुई है।
साहित्य-जगत में इस कृति का अवतरण एक ऐतिहासिक घटना जैसा है। इसकी छंदयोजना की बहुलता और प्रामाणिकता उल्लेख्य है।
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