मधु ‘मधुमन’ के ग़ज़ल संग्रह ‘ख़्वाब सी ये ज़िंदगी’ में काफ़ी विविधताएँ हैं। ग़ज़लों में बहुत सारी सकारात्मकताएँ हैं जो हमेशा हुआ करती हैं, जिसके लिए वो जानी जाती हैं, तो वहीं कहीं-कहीं मायूसी भी है लेकिन मायूसियों में भी उम्मीद की किरण बहुत से अशआर में नज़र आती हैं, लेकिन मुझे सबसे ज़्यादा हैरान करने वाले लगे वह अशआर जो उन्होंने मौजूदा दौर की सियासत पर कहे हैं और ख़ूब कहे हैं, अमूमन देखा गया है कि शायरात सियासत पर ज़्यादा लिखती नहीं है, खुलकर इज़हार नहीं करती हैं, सियासी मज़ामीन को अपनी ग़ज़लों में जगह कम ही दे पाती हैं लेकिन मैंने इस ग़ज़ल संग्रह में ज़रूर देखा है कि आपने वक़्त-वक़्त पर कुछ ऐसे अशआर भी कहे हैं जिनमें अपनी नाराज़गी और मायूसी दोनों खुलकर ज़ाहिर की है।
-शादाब अंजुम
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