नमोस्तु (Namostu / Rajesh Jain Rahi)

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इस संसार में परमात्मा की निष्काम भक्ति से बढ़कर कुछ नहीं, क्योंकि यह भक्ति ही हमें मुक्ति की ओर ले जाती है। रावण का भी अखण्ड भक्ति के द्वारा तीर्थंकर गौत्र का बंध हुआ। मैना सुंदरी ने अपने पति श्रीपाल का कुष्ठ रोग दूर किया। सोमासती की भक्ति से सर्प फूलों का हार बन गया।
ऐसी ही भक्ति श्री मानतुंग आचार्य ने की। अत्यंत विनय एवं समर्पण भाव से भक्तामर स्तोत्र की रचना की और उसी भक्ति की शक्ति के कारण
उनकी बेड़ियाँ टूटी एवं वो बंदी गृह से बाहर आए। यह भक्तामर स्तोत्र सर्व-सिद्धिदायक है।
संस्कृत में रचित इस भक्तामर स्तोत्र को समय-समय पर आचार्यों एवं साहित्यकारों ने हिंदी में गद्य एवं छंदबद्ध सृजन कर अपनी भक्ति भाव को प्रस्तुत किया है।
उसी श्रृंखला में रायपुर (छत्तीसगढ़) के जाने-माने प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री राजेश जैन ‘राही’ ने एक नवीन छंद मनहरण घनाक्षरी में भक्तामर स्तोत्र का अनुवादित सृजन किया है। इस छंद में सृजन मनोहर और गेयता की दृष्टि से तो बहुत सुंदर है ही, किंतु इसमें सृजन करना इतना आसान भी नहीं है। माँ सरस्वती की कृपा से यह संभव हो पाता है।

Author

Rajesh Jain 'Rahi'

ISBN

978-81-19590-34-6

Language

Hindi

Format

Paperback

Pages

72

Publisher

Shwetwarna Prakashan

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