गंध-वासन्ती (Gandh Vasanti / Mahesh Panchal ‘Mahi’)

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भिन्न-भिन्न रंग-गंध वाले शब्दों को सुरभित माला में गूँथने का हुनर इस गीतकार को ईश्वर प्रदत्त है। शीर्षक ‘गंध-वासन्ती’ से ही स्पष्ट है कि इसमें वासन्ती गंध है तो फिर लेश-मात्र भी संशय नहीं रह जाता कि पुस्तक का हर एक गीत मधुमास के आँगन को स्पर्श करके निकला है जो प्रकृति से संवाद करने का नैसर्गिक हुनर रखता है। छंद आबद्ध गीतों में कोकिल की कूक, पपीहे की टेर, शुक-सारिका की क्रीड़ा और बुलबुल के तरानों को सृजन के आँगन में गुंजायमान करने में माही जी ने माही तट से अलग ही राग छेड़ा है। गीतिका, लावणी, हरिगीतिका, सरसी, स्त्रग्विणी, द्वि-मनोरम आदि छंदों में हृदय से सीधे कागज पर उतरे गीतों ने आम्रकुंज में भ्रमण को लालायित कर दिया है।
प्रिय श्री माही जी के इस अनुष्ठान के लिए मैं अशेष बधाइयाँ देते हुए प्रत्येक हृदय की बस्ती तक इस गंध की वासन्ती दस्तक पहुँचने की शुभकामनाएँ अपने इन शब्दों के साथ प्रेषित करता हूँ-
‘आहत से अनुबंध लिख / दंभ पर प्रतिबंध लिख / बहती हवा को रोक कर / दिल पर उसके सुगंध लिख / जिसने उजाड़े सरसब्ज़ बाग़ / उस पतझर का बस अंत लिख’

– प्रकाश पंड्या ‘प्रतीक’
सहायक ब्लॉक शिक्षा अधिकारी, सज्जनगढ़

Author

Mahesh Panchal 'Mahi'

Format

Paperback

ISBN

978-119-59-008-7

Language

Hindi

Pages

126

Publisher

Shwetwarna Prakashan

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