मधुसूदन मैथिली गीतामृत (Madhusoodan Maithili Geetamrit / Dr. Madhusoodan Jha ‘Madhu’)

200.00

Buy Now
Category:

सर्वसाधारण केॅ गीतक अमोध ज्ञान प्राप्त करेवाक हेतु ई सरल, सटीक, संस्करण प्रकाशित करऽजा रहल छी। खास केॅ मैथिल समाज एहि मैथिली गीता सँ पूर्णतः लाभान्वित हेताह, हमर ई विश्वास अछि।
गीतोपनिषद यानी गीतामृत एक उत्कृष्ट योगदर्शन अछि। एहि मे प्रधानता सँ भक्तियोग, कर्मयोग, राजयोग आ ज्ञान योगक विवेचन भेल अछि।
पातंजलि योगदर्शन मे योगक परिभाषा योगश्चित निरोधः अर्थात चित्तवृत्त निरोधक क्रिया केॅ योग कहल जाइत छैक। चित्तकवृत्त निरोध भेलाक उपरान्ते दष्ट्रा यानी आत्मा अपना असली रूप मे प्रकट होइत छथि। एकर पहिने ओ ‘वृत्तसारुप्यमिभरत’ यानी वृत्तक अनुकूल हुनक रूप रहैत छन्हि।
गीतो मे भगवान कृष्णक कथन छन्हि जे मोनकेॅ बिना बस मे केने योग दुष्प्राप्य छैक।
योगाभ्यासक हेतु गीता मे भगवान मधुसूदन निम्नांकित निर्देश देलखिन्ह अछि। शुद्ध भूमि मे कुशः मृगछाला आ वस्त्र उपरोपरि यानी एक दोसरक उपर मे बिछाक आसन बनावी। आसन नहि त अधिक ऊँच हो या नहि त अधिक नीच यानी समतल भूमि रहल चाही। आसन पर वैसिकय शरीर, सिर आ ग्रीवा सीधा रहक चाही। पुनश्च अपना नाकक अग्रभाग मे दृष्टि स्थिर करक चाही। चित्तवृत्त पूर्णतः निरोध क कय ब्रह्मचर्य व्रत मे स्थिर भऽ जाय। आत्माकेॅ निरन्तर भगवान मे लगावैत परमानन्द पराकाष्ठावाली शान्तिकेॅ प्राप्त करी।
प्रत्यक्ष या परोक्ष रूपेॅ पातंजलि योगक अष्टांग योग यानी समाधिपाद, साधनापाद, विभूतिपाद आ कैवल्यपाद गीता मे परिलक्षित अछि। पातंजलि योगक यम यानी अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य आ अपरिग्रह आ नियम यानी शौच, संतोष, स्वाध्याय, तप आ ईश्वर प्रणिधान गीता मे शुरू सँ अंत तक वर्णित अछि। परमात्मा बोधस्वरूप आ जानवाक योग्य छथि, तत्वज्ञान सँ प्राप्त होमयवाला सबहक हृदय मे स्थित छथि। गीताक मूल सिद्धान्त इएह अछि। प्रकृति अर्थात् त्रिगुणमाया आ जीवात्मा अर्थात् क्षेत्रज्ञ-ई दूनू अनादि छथि। राग, द्वेष आ विकारपूर्ण त्रिगुणात्मक-सत, रज आ तम प्रकृति सँ उत्पन्न भेल अछि। सतोगुण सुख मे लगावैत अछि। रजोगुण कर्म मे लगावैत अछि आ तमोगुण प्रमाद आ आलस्य मे लगावैत अछि।

-डॉ. मधुसूदन झा ‘मधु’

Author

Dr. Madhusoodan Jha 'Madhu'

Format

Paperback

ISBN

978-81-19231-76-8

Language

Hindi

Pages

96

Publisher

Shwetwarna Prakashan

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “मधुसूदन मैथिली गीतामृत (Madhusoodan Maithili Geetamrit / Dr. Madhusoodan Jha ‘Madhu’)”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Shopping Cart
Scroll to Top