हिन्दी नवगीतों के उद्भव एवं पल्लवन के प्रामाणिक अध्ययन की दिशा में नवगीत दशकों की असंदिग्ध ऐतिहासिकता का अतिक्रमण समय-समय पर जिन महत्त्वपूर्ण दशकेतर नवता-साधकों द्वारा किया गया, उनमें मयंक श्रीवास्तव स्मरणीय हस्तक्षेप रखते हैं। वय क्रम में दूसरे दशक के नवगीतकारों के समवयस्क मयंक श्रीवास्तव सन् 75’ में प्रकाशित अपने प्रथम संग्रह के माध्यम से प्रसिद्ध कवि रामावतार त्यागी से प्राप्त पुष्ट गीत-संस्कारों का परिचय देने के साथ ही नवगीत की उस सम्भावना से भी साक्षात्कार कराते हैं जो आगे आने वाले संग्रहों में खुलकर अभिव्यक्त होता है। सन् 83’ में ‘सहमा हुआ घर’ शीर्षक संग्रह के प्रकाशन से वह हिन्दी नवगीतों के उस स्वर्णिम दौर के भी साक्षी-सहयात्री बनते हैं।
मयंक श्रीवास्तव के नवगीतों का चिन्तन पक्ष अत्यंत समृद्ध है। स्थानिकता पर वैश्विकता के पड़ते दबावों के सापेक्ष बदलती जैव-नैतिकता, परिवर्तन की आन्दोलनात्मक आँधी की सार्थकता-निरर्थकता पर टिप्पणी एवं कथित विकास से उत्पन्न पर्यावरणीय संकटों आदि का रेखांकन उनके नवगीतों के प्रमुख प्रतिपाद्य हैं। समय सन्दर्भ की अभिव्यक्ति करते अपने नवगीतों में वह न तो शिल्प से बहुत छेड़-छाड़ करते हैं न ही भाषा के अवांछित प्रयोग। शहरी जीवन से मोहभंग एवं गाँव के भी स्मृति में बसे गाँव की तरह न रह जाने के संवादात्मक द्वन्द्व के अनेक नवगीत उनके संग्रहों में उपलब्ध हैं जो एक संवेदनात्मक लोकजगत का निर्माण करते हैं।
ISBN | 978-81-19231-01-0 |
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Author | Edi. Shubham Shriwastava Om |
Format | Hardcover |
Language | Hindi |
Pages | 144 |
Publisher | Shwetwarna Prakashan |
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