न तुम पुण्य थे, न मैं पाप था (Na Tum Punya The, Na Main Paap Tha / Dr. R. C. Shukla)

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‘न तुम पुण्य थे, न मैं पाप था’ संकलन की कविताएँ एक नवीन विषय के रूप में जितनी बोधगम्य हैं, उनकी भाषा शैली उतनी ही प्रभावशाली है। संग्रह में कुल साठ रचनाएँ हैं जिनकी भाववस्तु एक कथा सूत्र में पिरोई हुई लगती है। अधिकांश गीतों में कवि ने एक उपदेशक की तरह प्रणय को परिभाषित करने का प्रयत्न किया है। स्थूल रूप में प्रणय बोध (काम) मानव की ऐन्द्रिक ऊर्जा है जो ज्ञानात्मक संवेगों के कारण सूक्ष्म होती जाती है। यही काम का अध्यात्म होना है। दिनकर जी ने अपने महाकाव्य ‘उर्वशी’ में प्रणय भावना को अध्यात्म का रूप दिया है- “ प्रणय संसार एक प्रकार का कामाध्यात्म है” संग्रह के कुछ गीतों में वैसी ही झलक देखने को मिलती है।

Pages

152

Author

Dr. R. C. Shukla

ISBN

978-81-19231-62-1

Format

Hardcover

Language

Hindi

Publisher

Shwetwarna Prakashan

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