आधुनिक काल के कवियों ने भी दोहे की अर्थ, कहन की क्षमता और प्रभान्विति को पहचानते हुए इस छंद का जम कर प्रयोग किया है। साथ ही नवगीतकारों ने सामयिक समस्याओं, विसंगतियों, विद्रूपताओं और अपने समय के ज्वलंत प्रश्नों को दोहे का विषय बना कर उसे नवीन तेवर प्रदान किये है। युगबोध परक दोहों के सर्जन से इस छंद की लोकप्रियता और भी अधिक बढ़ गयी है।
दोहा छंद की इन्हीं क्षमताओं और विशिष्टताओं पर रीझ कर सम्भवत: प्रतिष्ठित नवगीतकार आदरणीय बृजनाथ श्रीवास्तव ने युगबोधपरक दोहों की रचना की है। उनके द्वारा रचित दोहा–संग्रह ‘सूरज सझीदार’ में सात सौ दोहों को उनके कथ्य के आधार पर बारह शीर्षकों के अंतर्गत रखा गया है।
बृजनाथ श्रीवास्तव जी ने अपने समय के लगभग सभी ज्वलंत प्रश्नों, समस्याओं, विसंगतियों और विद्रूपताओं की सूक्ष्म पड़ताल कर उन्हें इन दोहों का लक्ष्य बनाया है। साथ ही प्रकृति चित्रण से लेकर संस्कार और संस्कृति जैसे शाश्वत विषयों पर भी भावपूर्ण और कलापूर्ण दोहों का सर्जन कर हिन्दी दोहा कोश को समृद्ध किया है।
-गोपाल कृष्ण शर्मा ‘मृदुल’
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