वर्ष 2019 में मैंने साहित्य में विकलांगता केन्द्रित साहित्य को एक आंदोलन का रूप देकर इसे साहित्य में एक नियमित विषय बनाने का प्रयास आरम्भ किया। ‘विटामिन जिन्दगी पुरस्कार’ को आरम्भ करने के पीछे भी मेरा उद्देश्य यही रहा कि साहित्यकार इस विषय पर लिखने के लिये प्रोत्साहित हों। एक विकलांग व्यक्ति के जीवन में भी पढाई-लिखाई, नौकरी, हार-जीत, शादी, नौकरी, बनते-बिगड़ते सम्बंधों जैसे वही मुद्दे होते हैं, जो किसी भी व्यक्ति के जीवन में पाए जाते हैं। अंतर बस यह है कि इन तमाम आयामों पर विकलांगता अपनी एक अलग छाप छोड़ती है। इस वजह से ये सामान्य मुद्दे एक अलग ही रंग में दिखाई पड़ते हैं। इन रंगों को देख पाना और उन्हें सटीकता से शब्दों में पिरो पाना ही विकलांगता विमर्श के एक अच्छे साहित्यकार की पहचान है।
अक्सर यह देखा जाता है कि रचनाकार विकलांगजन की यथास्थिति, संघर्ष और मनोभावों से दूर किरदार या समाज को आदर्श की तरह प्रस्तुत करने लगते हैं, जिससे बहुत-सी बातें केंद्र में नहीं आ पाती हैं। ऐसे में साहित्यकारों की यह ज़िम्मेदारी है कि वे इस वर्ग के जीवन को भी प्रकाश में लाएँ। आलोकिता की संवेदनशील लेखनी इन तथ्यों को समझती है और अपनी कहानियों, कविताओं और इस उपन्यास में भी उन्होनें इसका पूरा ध्यान रखा है।
-सम्यक ललित (ललित कुमार)
विकलांगता विमर्श के अग्रणी
निदेशक कविता कोश, गद्य कोश
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