रेखा भारती मिश्रा अपने ग़ज़ल-लेखन में अर्थ और लय की समान रूप से चिंता करती हैं जिसमें जीवन के प्रति स्वस्थ दृष्टिकोण और अभिव्यक्ति में उत्तरदायित्व का निर्वाह स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है। आज की विसंगतियाँ इनके दर्द की आँच पर धीरे-धीर पकती हैं जिसमें हर व्यक्ति के दर्द का दस्तखत होता है। इनकी ग़ज़लों की दो धाराएँ हैं एक प्रेम की और दूसरी विसंगतियों के प्रतिरोध की। कुल मिलाकर रेखा भारती मिश्रा की ग़ज़लों में युवा संवेदना का विद्रोही स्वर विसंगतियों की मुक्ति का आह्वान करता हुआ दिखाई पड़ता है। प्रेम और विसंगतियों के बीच दोनों पहलू चित्रित होते हैं— सकारात्मक और नकारात्मक। हम कह सकते हैं इन ग़ज़लों में मूलतः जीवन-बोध प्रतिध्वनित और प्रतिच्छवित हुए हैं। परिवेश के हिसाब से ग़ज़लें अपना मिज़ाज रचती हैं।
Author | रेखा भारती मिश्रा |
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Format | Paperback |
ISBN | 978-93-95432-79-5 |
Language | Hindi |
Pages | 99 |
Publisher | Shwetwarna Prakashan |
ABHISHEK ANAND –
रेखा भारती मिश्रा जी ने अपने मनोभाव को काफी रोमांचित तरीके से भावपूर्ण होकर “बात आँखों की ” गजल की किताब में रखा है ।ये किताब गजल की सर्वश्रेष्ठ किताबों में से एक है।
राजकान्ता राज –
रेखा भारती मिश्रा की “बात आंखों की ग़ज़ल संग्रह”मुझे प्राप्त हुई मैंने पूरी क़िताब पढ़ी ,इनकी गजलों में शब्दों
का चुनाव और लय की कसावट बहुत ही सराहनीय है
किरण सिंह –
“बात आँखों की” अपने शीर्षक को परिभाषित करती हुई खूबसूरत ग़ज़लों का संग्रह है जिसको पढ़ते हुए पाठक गुनगुनाने के लिए विवश हो जाते हैं। रेखा भारती मिश्रा को इस अनुपम संग्रह के लिए अनंत व अशेष शुभकामनाएँ 🌹🌹
vandana bajpai –
‘बात आँखों की’ बेहतरीन गजल संग्रह है जिसमें अनेक भावों को समेटा है l प्रेम जैसे कोमल भाव के साथ स्त्री सशक्तिकरण से संबंधित कई सशक्त गजलें इस संग्रह में हैं l रेखा भारती मिश्रा को इस गजल संग्रह के लिए बहुत बधाई व शुभकामनाएँ l