ढाई आखर (Dhai Aakhar / Basant Kumar Sharma )

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दोहा का वैशिष्ट्य हर रस की रसमय अभिव्यक्ति कर पाना है। इस दोहावली में भक्ति, शांत, शृंगार, करुण, आदि सभी रसों की सहज अभिव्यक्ति हुई है। शृंगार दोहाकार का प्रिय रस है। प्रेम की विविध भाव भंगिमाएँ अपना प्रेम प्रसंग, प्रेमनगर की सैर, जिसने लड्डू प्रेम का, शीतल मंद फुहार, कहाँ गए वे नैन, आये पास कपोत, पढ़ी हृदय की डायरी, निरख न पता रूप, दिल में एक चकोर, मेरे मन का हंस, विरहिन बैठी मौन, नयनों के पट खोल, ढाई आखर प्यार के आदि शीर्षकों के अंतर्गत प्रतिबिंबित है। वास्तव में यह दोहावली प्रेम के इर्द-गिर्द ही रची गई है। प्रेम की आध्यात्मिक, सांसारिक, मिलन-विरह, वात्सल्यमयी छवियाँ पाठक के मन को मोहने में समर्थ हैं। बसंत जी अलंकारों का बखूबी यथास्थान प्रयोग कर दोहों को चारुत्वमय बनाने में सिद्धहस्त हैं।

Author

बसंत कुमार शर्मा

Format

Paperback

ISBN

978-93-95432-14-6

Language

Hindi

Pages

168

Publisher

Shwetwarna Prakashan

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