बचपन में, घर में जब अखबार आता था, तो सबसे पहले मेरी दृष्टि संपादकीय पृष्ठ के पाठकनामा पर जाती थी, वहाँ, गुरुदेव सत्यप्रकाश ‘शिक्षक’ जी का कोई न कोई पत्र अवश्य मिल जाता था। आप वर्षों से, स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर अपनी बेबाक टिप्पणी रखते चले आ रहे हैं। आप के हजारों पत्र देश की नामी-गिरामी पत्र-पत्रिकाओं का न सिर्फ हिस्सा बने, बल्कि कई मंचों से सार्थक विमर्श का केंद्र बिन्दु भी बने हैं। इसके अतिरिक्त आप के साहित्यिक, सामाजिक जैसे अनेक विशयों पर तमाम आलेख व निबंध आदि प्रकाशित होते रहे हैं। मंचों से उनके विचार युवाओं में रचनात्मक जोश भरते हैं, वहीं नवीन सृजनात्मक कार्यों के लिए भी अभिप्रेरित करते हैं। खुशी और हर्ष की बात है कि उनके पत्रों का सुन्दर गुलदस्ता, एक संग्रह ‘विचार वीथिका’ के रूप में प्रकाशित हो रहा है, मुझे उम्मीद है कि उनके पत्रों, लघु आलेखों का यह संग्रह पाठकों में, चर्चा व विमर्श का हिस्सा जरूर बनेगा।
सुरेश सौरभ
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